जानिए कि लूडो के गेम का अविष्कार भारत ने किया था या नहीं।
लूडो एक मल्टीप्लेयर गेम है जो परंपरागत रूप से केवल चार खिलाड़ियों को एक साथ खेलने की अनुमति देता है। लेकिन हाल ही में बहुत सारे ऐप और ऑनलाइन संस्करण आ चुके हैं जो छह से आठ-खिलाड़ियों को एक साथ खेलने के विकल्प प्रदान करते हैं। इतना ही यह पैसा वाला गेम ऑनलाइन Ludo है। लूडो गेम मूल रूप से यह एक पासा खेल है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी की गोटियों को एक अलग रंग से चिह्नित किया जाता है, आमतौर पर लाल, नीला, पीला और हरा रंग शामिल किए जाते हैं। हर व्यक्ति के पास इस खेल में चार गोटी दी जाती है।
धीरे धीरे इसके रूपों में बदलाव देखने को मिले है जहाँ पहले आप घर बैठे आसानी किसी दूर रह व्यक्ति के साथ बातचीत नहीं कर सकते थे। तो वहीं आज घर आज दूसरे के साथ लूडो का खेल खेल सकते हो। आज के समय में सबसे लोकप्रिय संस्करणों में खेल छह या एक के रोल के साथ खुलता है और इसका उद्देश्य सभी चार गोटियों को विजय घर तक पहुँचाना होता है, जो खेल के केंद्र में होता है। खेल के बारे में मजेदार हिस्सा एक दूसरे की गोटी को काटना होता है। लूडो खेलना पैसा कमाने जैसा होता जा रहा है क्योंकि आप इसके माध्यम से आसानी से पैसा कमा सकते हैं। आज आप जिस लूडो गेम को खेलते हैं उसके लिए लूडो चाहिए होता है और क्या आप इस गेम के आविष्कार के बारे में जानते हैं, क्या इसका आविष्कार भारत देश में हुआ।
क्या लूडो का आविष्कार भारत ने किया ?
आपको बता दें कि ऐसा माना जाता है कि लूडो खेलने की शुरुआत भगवान शंकर एवं कृष्ण के समय में ही हो चुकी है। तब से लेकर अब तक भारत देश में इस गेम को खेला जा रहा है, भारत में इस खेल का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है, परन्तु इस खेल का उल्लेख महाभारत और अन्य हिन्दू पुराणों में भी किया गया है। ऑनलाइन लूडो गेम का एक बदलता रूप है पहले से लेकर अब तक इसके कई रूपों में बदलाव हुआ है।
प्राचीन काल से लेकर के अभी के समय तक लूडो गेम को अलग अलग नाम से पहचाना जाता है जैसे कि- पच्चीसी, चौसर । इसके साथ ही आपको बता दें कि लूडो खेल का आविष्कार भारत में ही हुआ था। लूडो को भारत देश में प्राचीन काल से खेला जा रहा है, जिसका विख्यात कई सारे ग्रंथों में भी किया गया है जिससे पता चलता है कि यह खेल कितना पुराना है। समय के साथ लूडो गेम और इसके नियम में काफी बदलाव भी देखने को मिले हैं।
लूडो एक बहुत ही प्राचीन खेल है जिसका इतिहास काफी पुराना माना जाता है। इस खेल का विख्यात विष्णु पुराण, महाभारत, और भागवत गीता जैसे ग्रंथों में भी किया गया है। आपको यह जानकर काफी हैरानी होगी कि यह पहले के समय में इस खेल को पच्चीसा के नाम से जाना जाता था। इस खेल का पुराना इतिहास भी मौजूद है, जो कि अकबर के राज में फतेहपुर सीकरी में बहुत बड़ा पच्चीसी बोर्ड बना हुआ है जिससे इसके बारे में पता चलता है।
साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि अकबर अपनी दासियो को प्यादा बनाकर इस खेल को खेलना पसंद करते थे और फिर जैसे-जैसे समय बढ़ता गया वैसे-वैसे इस खेल को लूडो का नाम इस खेल को मिल गया। तो इसका सीधा अर्थ यह है कि राजा अकबर प्यादों की जगह अपनी दास दसियों को रखते थे और पासे पर आने वाले नंबर के अनुसार उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति देते थे। आज हमें जिस प्रकार गोटी को आगे उठाकर रखते हैं ठीक उसी प्रकार राजा अकबर हुकुम देते थे और उतने ही नंबर दास दासी आगे बढ़ जाते थे। इसके अलावा ऐसा आपने सीरियल में भी देखा होगा। लूडो के गेम को इस प्रकार से खेला जाता है कि गोटी की जगह व्यक्तियों को रखा जाता था।
लूडो का इतिहास
तो सबसे पहले तो आप यह जान लें कि लूडो गेम की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी। लूडो जैसे किसी भी खेल का पहला विवरण 16वीं शताब्दी में लिखा गया है। यह तब की बात है जब मुगल बादशाह अकबर के दरबार में चौपर नामक खेल खेला जाता था। इसके साथ ही इतिहासकार इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि लूडो का खेल अकबर से कितना पुराना है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कुछ विशेषताएं आदि भारत में तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौजूद प्रतीत होती हैं। यह तो सच है कि इसका आविष्कार भारत देश में ही हुआ।
तो वास्तव में, एक तरह से, लूडो पूरे भारतीय इतिहास में मौजूद रहा है - क्योंकि खेल का कोई न कोई संस्करण प्रत्येक युग का केंद्र रहा है। आप आज के युग में किसी ऐसे व्यक्ति से पूछ सकते है कि क्या आप मेरे साथ लूडो खेल सकते हैं जिसको आप जानते तक नहीं हो। साथ ही उनके साथ खेलकर पैसा कमा सकते हैं।
चौपर या चौसर नाम से भी यह गेम पहले जाना जाता है। यह खेल (जो लूडो जैसा दिखता है) सोलह टुकड़ों, तीन पासों और एक क्रॉस के आकार में एक बोर्ड (आमतौर पर कपड़े से बना) के साथ खेला जाता था - जो इस तरह दिखता था। ध्यान दें, यह तीन लंबे पासे का उपयोग करके इसे खेला जाता था। जैसे जैसे योग्य आगे बढ़ा वैसे-वैसे लूडो खेल के नाम बदलते चले गए पहले से पच्चीसी नाम से जाना जाता था और इसी प्रकार चौसर और चौपर नाम के खेल भी हुआ करते थे लेकिन आज के समय में से लोगों ने इसे लूडो नाम से जाना है और इसके खेलने के तरीके भी कुछ बदल गए हैं जहां पहले चार लोगों का खेल सकते थे तो वहीं त आज ऑनलाइन माध्यम से एक साथ 6 से 8 लोग खेल सकते हैं।
चौपर के खेल के कुछ अन्य संदर्भ भी हैं जो 19वीं और 20वीं शताब्दी में देखे जाते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि चौसर एक लंबे पासे (यहां तक कि एक छड़ी के पासे) के साथ खेला जाता था - ये दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अधिक आम थे और यह क्यूबिकल पासा के साथ नहीं खेला गया था।
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